lunedì 15 ottobre 2018

फ़िनलैंड में नोकिया की बर्बादी के ग़ुस्से से यूं आई ख़ुशहाली

एक वक़्त था जब मोबाइल फ़ोन की दुनिया में फ़िनलैंड की कंपनी नोकिया का बोलबाला हुआ करता था.
साल 2000 की शुरुआत में वैश्विक मोबाइल बाज़ार में 40 फ़ीसदी हिस्सा नोकिया के पास हुआ करता था.
लेकिन इसके 10 साल के अंदर ही नोकिया का हैंडसेट व्यापार बुरी तरह से प्रभावित हुआ.
दक्षिण कोरिया से लेकर जापानी कंपनियों ने दुनिया के मोबाइल फ़ोन बाज़ारों पर कब्ज़ा जमाना शुरू किया.
इसकी वजह से फ़िनलैंड के ओलू शहर की अर्थव्यवस्था चरमरा गई, क्योंकि ये वो शहर था जहां नोकिया अपने ज़्यादातर मोबाइल फ़ोनों का निर्माण किया करता था.
इस शहर की आबादी का एक बड़ा भाग अपनी जीविका के लिए नोकिया पर निर्भर था.
फ़िनलैंड की सार्वजनिक फंडिंग एजेंसी 'बिज़नेस फ़िनलैंड' से जुड़े आर्टो पसिनेन कहते हैं, "ये बहुत ही बुरा वक्त था. 4300 लोगों को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा था."
नोकिया को नुक़सान होने का सीधा असर फ़िनलैंड के ओलू शहर में रहने वाले लोगों पर पड़ा. लोगों की ज़िदगियां सीधे तौर पर प्रभावित हुईं. जीविका का साधन अचानक से बाधित हो गया.
स्लीप ट्रैकर नाम की अंगूठी नुमा डिवाइस बनाने वाली कंपनी ओउरा रिंग से जुड़े पेट्टरी लाथेला कहते हैं, "उस समय लोगों में बहुत ग़ुस्सा और शर्म का भाव था. इससे एक तरह की असुरक्षा की भावना पैदा हुई. लोगों को पता नहीं था कि अब क्या होगा और वह किस तरह इसका सामना करेंगे."
नोकिया के धीरे-धीरे बाज़ार से बाहर होने की वजह से लोग परेशान थे.
उस समय के हालात को बयां करते हुए आर्टो पसिनेन बताते हैं, "शहर में माहौल काफ़ी गंभीर था. लेकिन फिर अचानक से लोगों को ये अहसास हुआ कि ये एक नई शुरुआत भी हो सकती है."
ओलू शहर में तकनीक क्षेत्र के लोगों ने एक नई शुरुआत की ओर क़दम बढ़ाने शुरू किए.
ख़ास बात ये है कि नोकिया ने भी इसमें एक अहम भूमिका अदा की.
आर्टो पसिनेन बताते हैं, "उस समय पूरी दुनिया में सूचना और संचार तकनीक में माहिर लोगों की कमी थी. इसी समय एक शहर में अचानक से 4300 ऐसे लोग उपलब्ध थे जो इसके बारे में काफ़ी कुछ जानते थे. सबसे अहम बात ये थी कि लोगों ने सक्रिय रूप से काम करना शुरू किया. अपने पुराने दोस्तों को बताना शुरू किया कि फ़िनलैंड में ओलू शहर में क्षमतावान आईसीटी पेशेवरों की टीम उपलब्ध है. "
ऐसे में स्थानीय लोगों ने अपने संपर्कों के माध्यम से और अपनी क्षमता के आधार पर नई शुरुआत करने की ओर क़दम बढ़ाने शुरू कर दिए.
पेट्टरी लाथेला कहते हैं, "ये वो लोग थे जो मोबाइल फ़ोन बनाते थे. लेकिन उनके ज्ञान का इस्तेमाल वियरेबुल डिवाइस, मेडिकल डिवाइस और ऑटोमेटिव इंडस्ट्री में भी हो सकता था. इसके साथ ही यूनिवर्सिटीज़ खुलना शुरू हुई थीं. उद्यमी केंद्रों ने लोगों के बीच तालमेल को बढ़ाने में बड़ी भूमिका अदा की.
फ़िनलैंड के इस शहर में नोकिया अभी भी एक अहम भूमिका निभाता है, क्योंकि नेटवर्क ऑपरेशंस के क्षेत्र में ये अभी भी एक अहम खिलाड़ी बना हुआ है.
आर्टो पसिनेन कहते हैं, "एक तरह से नोकिया के हैंडसेट बिज़नेस का चौपट होना ओलू शहर के लिए बेहतर साबित हुआ. अब यहां के सूचना और संचार तकनीक उद्योग में काफी विविधता है. यहां पर कंपनियां कार उद्योग, डिज़िटल हेल्थ जैसे तमाम क्षेत्रों में काम कर रही हैं."
वहीं, नोकिया से जुड़ीं एर्जा सनकारी इस शहर की नई उड़ान में नोकिया की भूमिका को समझाते हुए कहती हैं, "हमारे लिए ये बहुत अहम था कि हमारे कर्मचारियों को नए अवसर मिले. इसलिए हमने एक कार्यक्रम शुरू किया जिसका नाम ब्रिज़ था. ये बहुत ही सफल रहा. उदाहरण के लिए, ओलू शहर में इसकी वजह से 400 नए स्टार्ट अप शुरू हुए"
फ़िनलैंड का ये शहर आईसीटी इंडस्ट्री की वजह से काफ़ी मजबूत स्थिति में है.
पसिनेन बताते हैं, "फिनिश भाषा में एक शब्द होता है 'सिसू' जिसका मतलब होता है कभी भी हार न मानना और भविष्य की ओर सोचते हुए प्रयास करते जाना."
इस समय ओलू शहर दुनिया भर में तकनीक के क्षेत्र में इन्नोवेशन का केंद्र माना जाता है और इस शहर के तीन 5जी टेस्ट नेटवर्क इसका सबूत हैं.फ़ग़ानिस्तान में किसी सिख का निर्विरोध चुनाव जीतना बड़ी बात लगती है.
लेकिन थोड़ा रुकिए! बात इतनी सीधी भी नहीं है.
हिंदू और सिख अफ़ग़ानिस्तान के धार्मिक अल्पसंख्यक हैं और ये दोनों समुदाय मिलकर अपना एक प्रतिनिधि अफ़ग़ानिस्तान के केंद्रीय संसद में भेज सकते हैं.
20 अक्टूबर को होने जा रहे संसदीय चुनाव नरिंदर सिंह खालसा निर्विरोध निर्वाचित हो गए हैं.
नरिंदर सिंह पेशे से एक व्यापारी हैं और कोई राजनीतिक तजुर्बा नहीं रखते हैं, लेकिन अगले कुछ दिनों में अफ़ग़ानिस्तान की सर्वोच्च विधायिका (संसद) के सदस्य बन जाएंगे. वो अवतार सिंह खालसा के बड़े बेटे हैं.
अवतार सिंह खालसा ने अफ़ग़ानिस्तान के संसदीय चुनाव के लिए नामांकन किया था और नामांकन के कुछ ही दिन बाद इसी साल जून के महीने में हुए जलालाबाद शहर के एक आत्मघाती हमले में मारे गए थे.
पिता की मौत के बाद नरिंदर सिंह खासला ने हिंदू और सिख समुदाय के सहयोग से उनकी जगह पर संसदीय चुनाव के लिए नामांकन किया है.
नरिंदर सिंह ने बताया, "पिताजी के साथ हिंदू और सिख समुदाय के एक सम्मेलन में भाग लेने के लिए जलालाबाद गया था. वहीं पर एक आत्मघाती बम हमला हुआ जिसमें 19 लोग मारे गए. मारे गए लोगों में मेरे पिता भी थे."
इस हमले में नरिंदर सिंह ख़ुद भी बुरी तरह ज़ख़्मी हो गए थे.
अवतार सिंह खालसा की मौत के बाद नरिंदर को इलाज के लिए भारत ले जाया गया था.
इलाज के बाद जब वे वापस अफ़ग़ानिस्तान लौटे तो हिंदू और सिख समुदाय के लोगों ने दिवंगत अवतार सिंह खालसा की जगह पर चुनाव लड़ने का प्रस्ताव रखा.
नरिंदर बताते हैं, "इसके अलावा मेरे पास और कोई उपाय भी नहीं था. क्योंकि नंगरहार के इस आत्मघाती हमले में दोनों समुदायों के अधिकांश बड़े-बूढ़े लोग मारे गए थे."
अफ़ग़ानिस्तान के दूसरे लाखों नौजवानों की तरह अल्पसंख्यक समुदाय के युवा भी पिछले 40 साल से चल रहे संघर्ष और हिंसा के कारण पिछड़ेपन का शिकार हैं.
38 साल के नरिंदर सिंह चार बेटों के पिता हैं. न तो उनके बच्चे और न ही अल्पसंख्यक समुदाय के दूसरे लोगों के बच्चों के लिए अफ़ग़ानिस्तान में हालात एसे हैं कि वे अच्छी तालीम हसिल कर सकें.
नरिंदर कहते हैं कि उनके लोग तो अपने धार्मिक रस्मो रिवाज़ और पर्व त्योहार भी बड़ी कठिनाई से मना पाते हैं.
"इन अल्पसंख्यकों की केवल यही समस्या नहीं हैं बल्कि इन 40 सालों के दौरान हमारे लोगों की ज़मीन और दूसरी संपत्तियां हड़प ली गई हैं."
अफ़ग़ानिस्तान के हिंदू और सिख समुदाय के लोगों का मुख्य पेशा व्यापार और पारंपरिक यूनानी दवाइयां का कारोबार है.
नरिंदर सिंह खालसा भी कारोबार ही करते हैं. वे कहते हैं, "राजनीति में मैं केवल हिंदुओं और सिखों के लिए नहीं बल्कि मुल्क के सभी लोगों के लिए काम करूंगा."
"हिंदू और सिख सदियों से अफ़ग़ानिस्तान में रहते आ रहे हैं. अफ़ग़ानिस्तान की अंदरूनी लड़ाई में इन दोनों समुदायों की कोई भागीदारी नहीं है लेकिन इसके बावजूद हमारे बहुत से लोग मारे गए हैं."
"मेरे ही परिवार के नौ लोगों ने अब तक इस युद्ध में अपनी जान गंवाई है."
नरिंदर सिंह कहते हैं कि उनका परिवार कई पीढ़ियों से इसी मुल्क में रहता आ रहा है और इसी वतन का हिस्सा है.
वो कहते हैं, "सरकार और विश्व बिरादरी को चाहिए कि हम लोगों को हमारा अधिकार दे और ये गर्व की बात है कि सिख और हिंदू समुदाय अपना प्रतिनिधि मजलिस (संसद) में भेज रहे हैं.
नरिंदर सिंह के पिता अफ़ग़ानिस्तान के सीनेटर और संसद के सदस्य रह चुके थे.
इसी साल जुलाई के पहले हफ़्ते में अफ़ग़ानिस्तान के पूर्वी शहर जलालाबाद में एक आत्मघाती बम हमले में कम से कम 19 लोग मारे गए थे.
मरने वालों में से अधिकतर लोग अल्पसंख्यक सिख समुदाय के थे जो राष्ट्रपति अशरफ़ ग़नी से मिलने के लिए एक गाड़ी में सवार होकर जा रहे थे. उसी समय उन्हें हमले का निशाना बनाया गया.वतार सिंह खलसा ने बीबीसी को दिए अपने अंतिम इंटरव्यू में कहा था, "अपने परिवार के आठ लोगों को अब तक खो चुका हूं और अगर बाक़ी 14 लोगों को अफ़ग़ानिस्तान के लिए जान देनी पड़ी तो हम इसके लिए पीछे नहीं हटेंगे."
"हम इसी मुल्क में रहेंगे और कभी अफ़ग़ानिस्तान छोड़कर नहीं जाएंगे. अपने वतन के लिए सीने में गोली खाने पर हमें गर्व होगा."

domenica 7 ottobre 2018

चीन-पाक से दो मोर्चे पर खतरा, फंड के अभाव में अटके सेना के

सैन्य बजट में कमी के चलते आधुनिकीकरण के कई प्रोजेक्ट पर ब्रेक लग गया। पाकिस्तान से सटी पश्चिमी सरहद के पास चल रहे सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट्स समय पर फंड नहीं मिलने के कारण अटक गए हैं। करीब 1000 करोड़ की लागत के इन प्रोजेक्ट्स के लिए फंड नहीं मिलने से ठेकेदारों के कार्यों का भुगतान अटका हुआ है। हालांकि, उन्होंने अभी तक काम बंद तो नहीं किया, लेकिन उनका कहना है कि यदि ऐसे ही हालात रहे तो काम रोकना पड़ेगा।

कोई प्रोजेक्ट पूरी तरह ठप नहीं हैं, लेकिन ये काम तय समय से साल भर देरी से चल रहे हैं। ऐसे में इनकी लागत बढ़ने की आशंका है। वहीं, इससे करीब 10-12 हजार दिहाड़ी मजदूरों की रोजी-रोटी पर भी संकट छा गया। सेना रक्षा मामलों की स्थायी संसदीय समिति के समक्ष रक्षा बजट में कमी का मुद्दा फरवरी में उठा चुकी है।

थलसेना के तत्कालीन वाइस चीफ लेफ्टिनेंट जनरल शरतचंद्र ने कहा था कि चीन और पाकिस्तान से दो मोर्चों पर जंग के खतरों को देखते हुए सेना के आधुनिकीकरण को गति देने की जरूरत है। वर्ष 2018-19 का रक्षा बजट सेना के लिए एक झटके से कम नहीं है। आधुनिकीकरण के लिए 21 हजार 338 करोड़ रुपए काफी कम हैं।

बिल जमा कराने के 7 माह बाद भी भुगतान नहीं: एमईएस के जोधपुर संभाग में करीब 200 करोड़ रुपए के बिल अक्टूबर 2017 से अटके पड़े थे। इनका भुगतान इस साल अप्रैल में एक साथ किया गया। ऐसा पहली बार हुआ है, जब सैन्य प्रोजेक्ट फंड के अभाव में प्रभावित हो रहे हैं, जबकि यहां बिल सब्मिट करते ही 24 घंटे में चेक से भुगतान कर दिया जाता था।

एमईएस बिल्डर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के चेयरमैन अरविंद मित्तल का कहना है कि पिछले सात माह से निर्माण कार्यों के बिल अटके हैं। पैसों के अभाव में श्रमिकों को समय पर भुगतान नहीं हो पा रहा और काम चालू रखने के लिए बाजार से मटीरियल खरीदने में भी परेशानी आ रही है। इस बारे में कमांडर वर्कर्स इंजीनियर के एसई से बात करने का प्रयास किया, लेकिन उन्होंने उच्चस्तरीय मामला बता जानकारी देने से इनकार कर दिया।  

पहले महंगी बजरी मंगवा चलाया काम,  अब सीमेंट महंगा होने से बढ़ीं मुश्किलें : एमईएस से भुगतान तो अटका हुआ है ही, अब सीमेंट के दाम बढ़ने से भी प्रोजेक्ट पर संकट हो गया हैं। साल भर से बजरी के खनन पर रोक के चलते पहले महंगे दाम पर बजरी मंगवा काम पूरा किया जा रहा था। अब सीमेंट प्रति बैग सौ रुपए तक महंगा हो गया है। यानी सवा दो सौ रुपए में सीमेंट का एक बैग मिल रहा है।

एमईएस बिल्डर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के सचिव राजीव चौधरी व वाइस प्रेसिडेंट नरेश दवे का कहना है कि फंड के भुगतान के लिए रक्षा मंत्री से लेकर पीएमओ तक ज्ञापन भेजे जा चुके हैं, लेकिन प्रोजेक्ट की अटकी हुई राशि नहीं मिल रही हैं। सबसे ज्यादा असर एशिया के सबसे बड़े ग्रीन कैंट जैसलमेर के मॉर्डन मिलिट्री स्टेशन के निर्माण पर पड़ रहा है।    

पश्चिमी सीमा पर सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण ये प्रोजेक्ट हो रहे प्रभावित
1. जोधपुर एयरबेस का मॉडर्नाइजेशन प्रोग्राम। रनवे विस्तार, टैक्सी-वे सहित चार बड़े प्रोजेक्ट, लागत 100 करोड़    
2. बनाड़ स्थित आयुध डिपो में डंप यार्ड और अन्य महत्वपूर्ण निर्माण, लागत 40 से 50 करोड़ रुपए।      
3. जोधपुर स्थित कोणार्क कोर मुख्यालय सहित आसपास के छोटे सैन्य स्टेशन पर सालाना मेंटेनेंस व रिपेयरिंग के काम, लागत 50 से 60 करोड़।    
4. जैसलमेर में एशिया के पहले मॉडर्न मिलिट्री स्टेशन निर्माण, लागत 600 करोड़।    
5. बाड़मेर के जालीपा व जसई सैन्य स्टेशन पर महत्वपूर्ण इन्फ्रास्ट्रक्चर व आवास निर्माण, लागत 100 से 125 करोड़ रुपए।      
6. जोधपुर सैन्य स्टेशन में सोलर पाॅवर प्रोजेक्ट, लागत 40 करोड़।
*(लागत व कार्य एमईएस बिल्डर्स एसोसिएशन के अनुसार)